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आर्तानां

॥ श्रीः ॥

    आर्तानां विविधैर्गदैः भुविपरित्राणाय योऽवातरत्‌ ।

    पाणिभ्यां निखिलामयान्तकसुधाकुम्भं जलौकां दधौ ॥

    अङ्गैर्यत्कृपया स्थिरैर्हि शरदो जीवेम् सौख्यात्‌ शतम्‌ ।

    वन्दे वैद्यजगुरुं कमपि तं धन्वन्तरिं सादरम्‌ ॥

Last updated on February 9th, 2022 at 09:10 am

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