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पुंसवन

   ॥ श्रीः ॥

    शङ्खं चक्रं जलौकां दधतमृतघटं चारुदोर्भि श्च तुर्भिः ।

    सूक्ष्मस्वच्छ्यातिहृद्यांशुकपरिविलसन्‌ मौलिमम्भोजनेत्रम्‌ ॥

    कालाम्भोदोज्ज्वलाङ्गं कटितटविलसश्चारुपीतांबराढ्यम्‌ ।

    वन्दे धन्वन्तरिं तं निखिलगदवनप्रौढदावागिन्लीलम्‌ ॥                                                               … चतुर्वर्ग चिन्तामणिः

Last updated on February 9th, 2022 at 09:11 am

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