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यो विश्वं

        ॥ श्रीः ॥

    यो विश्वं विदधाति पाति सततं संहारयत्यञ्जसा ।

    सृष्ट्वा दिव्यमहौषधीश्चं विविधान्‌ दूरीकरोत्यामयान्‌ ॥

    बिभ्राणोऽञ्जलिना चकास्ति भुवने पीयूषपूर्णं घटम्‌ ।

    तं धन्वन्तरिं रूपमीशममलं वन्दामहे श्रेयसे ॥

Last updated on February 9th, 2022 at 09:09 am

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