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11. सप्तलाशङ्खिनीकल्पः - कल्प - च.

चरकसंहिता

कल्पस्थानम्‌ ।

एकादशोऽध्याय: ।

       अथात: सप्तलाशङ्खिनीकल्पं व्याख्यास्याम: ॥१॥

       इति ह स्माह भगवानात्रेय: ॥२॥

       सप्तला चर्मसाह्वा च बहुफेनरसा च सा ।

       शङ्खिनी तिक्तला चैव यवतिक्ताऽक्षि(क्ष)पीडक: ॥३॥

      ते गुल्मगरहृद्रोगकुष्ठशोफोदरादिषु ।

       विकासितीक्ष्णरूक्षत्वाद्योज्ये श्लेष्माधिकेषु तु ॥४॥   

       नातिशुष्कं फलं ग्राह्यं शङ्खिन्या निस्तुषीकृतम्‌ ।

       सप्तलायाश्च मूलानि गृहीत्वा भाजने क्षिपेत्‌ ॥५॥

       अक्षमात्रं तयो: पिण्डं प्रसन्नालवणायुतम्‌ ।

       हृद्रोगे कफवातोत्थे गुल्मे चैव प्रयोजयेत्‌ ॥६॥

       प्रियालपीलुकर्कन्धुकोलाम्रातकदाडिमै: ।

       द्राक्षापनसखर्जूरबदराम्लपरूषकै: ॥७॥

       मैरेये दधिमण्डेऽम्ले सौवीरकतुषोदके ।

       सीधौ चाप्येष कल्प: स्यात्‌ सुखं शीघ्रविरेचन: ॥८॥

       तैलं विदारिगन्धाद्यै: पयसि क्वथिते पचेत्‌ ।

       सप्तलाशङ्खिनीकल्के त्रिवृच्छ्यामार्धभागिके ॥९॥

       दधिमण्डेन सन्नीय सिद्धं तत्‌ पाययेत च ।

       शङ्खिनीचूर्णभागौ द्वौ तिलचूर्णस्य चापर: ॥१०॥

       हरीतकीकषायेण तैलं तत्पीडितं पिबेत्‌ ।

       अतसीसर्षपैरण्डकरञ्जेष्वेष संविधि: ॥११॥

       शङ्खिनीसप्तलासिद्धात्‌ क्षीराद्यदुदियाद्घृतम्‌ ।

       कल्कभागे तयोरेव त्रिवृच्छ्यामार्धसंयुते ॥१२॥

       क्षीरेणालोड्य संपक्वं पिबेत्तच्च विरेचनम्‌ ।

       दन्तीद्रवन्त्यो: कल्पोऽयमजशृङ्ग्यजगन्धयो: ॥१३॥

       क्षीरिण्या नीलिकायाश्च तथैव च करञ्जयो: ।

       मसूरविदलायाश्च प्रत्यक्‌पर्ण्यास्तथैव च ॥१४॥

       द्विवर्गार्धांशकल्केन तद्वत्‌ साध्यं घृतं पुन: ।

       शङ्खिनीसप्तलाधात्रीकषाये साधयेद्घृतम्‌ ॥१५॥

       त्रिवृत्कल्पेन सर्पिश्च त्रयो लेहाश्च लोध्रवत्‌ ।

       सुराकम्पिल्लयोर्योग: कार्यो लोध्रवदेव च ॥१६॥

       दन्तीद्रवन्त्यो: कल्पेन सौवीरकतुषोदके ।

       अजगन्धाजशृङ्ग्योश्च तद्वत्‌ स्यातां विरेचने ॥१७॥

       तत्र श्लोकौ–

       कषाया दश षट्‌ चैव षट्‌ तैलेऽष्टौ च सर्पिषि ।

       पञ्च मद्ये त्रयो लेहा योग: कम्पिल्लके तथा ॥१८॥

       सप्तलाशङ्खिनीभ्यां ते त्रिंशदुक्ता नवाधिका: ।    

       योगा: सिद्धा: समस्ताभ्यामेकशोऽपि च ते हिता: ॥१९॥

       इत्यग्निवेशकृते तन्त्रे चरकप्रतिसंस्कृतेऽप्राप्ते

       दृढबलसंपूरिते कल्पस्थाने सप्तलाशङ्खिनीकल्पो
 
      नामैकादशोध्याय: ॥२०॥

Last updated on July 2nd, 2021 at 10:26 am

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